Sunday, 24 February 2019

#पहले अलफ़ाज़ !

मंजिल को पोहोचना है ख्वाब उसका। 
ज़हन में अपने ठान ली है ये बात !

कांटो के अलफ़ाज़ चुभते रहेंगे युंही 
उनके ही अहंकार की राख से नेहलादे वही .. 
ज़िम्मा जो उठाया है स्वप्नपूर्ति का। 

करवटें लेंगी ये राहे,
कुछ नई 
कुछ पुरानी 
काफिरों की भी कमी नहीं इन राहों पर।

तू बस चलते जा 
कारवां बनता जायेगा 
चाहे सर्द हवाएं तेरी ज़िद को जमाये 
या
धुप की गर्मी गला दे तेरा विश्वास
बुझने नहीं देना तेरी दिए की आस,
तू बस चलते जा। 

पटाखों की शोर में तेरी दिए की चीख 
कही दब सी जाएगी। 

मगर पीछे मुड़के देखना ज़रूर 
बादल बनके बारिश लारहा हूँ !

बारिश और दिए की राहें अलग क्यों न हो 
मंज़िल एक है जो 

तू जल कर रौशनी फैलाती जा 
में यूँ ही खुशियाँ बरसाता रहूँगा !

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