हाथ में कलम था मगर पन्ना कोरा ही रहा,
बोहोत वक्त बीत गया सोचने में ।
क्या लिखूं ?
इतना कुछ है, जो जहन में है मगर बया कैसे करू ?
स्याही भी सुख गई और पन्ना भी हवा में उड़ गया
लिख मेरा मन रहा था
यादों के पन्नो पर, आंखों की कलम से आंसुओं की स्याही से ।
फिर वही बातें, वही राते,
हस्ते हुए दिन और गीत भरी शामे ।
थोड़ा और जी लिया होता उन लम्हों को,
अपनी परेशानियों को दूर ढकेलकर कूद जाता खुशी के कुएं में,
डूबता भी तो खुशी से डूबता ।
वक्त इतना सब बदल देता है क्या ?