Wednesday, 1 May 2019

शहर !


जिस शहर से आप हो आयी,
वहा का में देहाती।

रास्ता ढूंढते हुए जब
एक नाम से नज़र मेरी टकराई।

कैसा दस्तूर है यह
जो
आपसे बात करने को मन किया
तो
मैंने कविता की राह अपनायी। 

Thursday, 4 April 2019

उम्मीद है..........!?

वो क्या है जो हर किसीको सोचने पर मजबूर कर देता है ?
क्यों कोई देर रात को गहरी सोच में पड़ जाता है ?

हम अक्सर अकेले होते है तो बीते पल याद करते है। 
कुछ चीज़े अलग से करने का मौका मिल जाए तो न जाने हम आज वो नहीं होते जो अभी है। 
कभी ये ख्याल तो आया ही होगा हर किसीको को !

हम सबने कुछ गलतिया की होंगी जो समय में पीछे जाकर बदलने का मन करता है। 
एक नकली चेहरा पहने घूमते है हम सब
वो झूठी मुस्कान लिए सब को बेवकूफ बनाते रहते है 
अपने आप को भी। 

जब थके हारे शाम को घर लौटते है,
तो आईने में दिखता है हमे। 
वो जिसने मुखौटा नहीं पहना,  
हमे रोता देखकर जो हंस रहा हैं। 

उसे नज़रअंदाज़ कर के जब सोने की कोशिश करते है, 
तो पलकों के बीच का फैसला इतना बढ़ जाता है जितना आसमान और ज़मीन के बीच हो। 
पता नहीं किस की खोज में रहता है हमेशा ?

आज कल तारे क्या चाँद भी नज़र नहीं आता इन शहरो में !
में अक्सर अपनी दिल बात चाँद से बयान करता हूँ। 
उससे क्या ही छिपाना,
काली रातों में जो अपनी रौशनी से अंधे को राह दिखाए। 
मुखौटे के पीछे छुपे हमारी असलियत को वही तो पहचानता है। 

इन शहरो में आज कल उसअंधे को रह देने वाला कोई नहीं !
तरसती है आँखें उस रौशनी को महसूस करने के लिए.......
  
कभी शांत बहती नदी में देखा करता था में उसकी परछाई, 
ऐसा लगता जैसे आसमान और ज़मीन का मिलान हो रहा हो। 
उसकी सफ़ेद रौशनी में 
किनारे की रेत समंदर कि लेहरो को चूमते हुए गहरायी की तरफ खिच्ची चली जाती। 

आँखें खुली रखकर ही सो जाते है हम, 
बीते कल की सपनो में खोकर। 

सुबह की किरने फिर बहलाती 
उम्मीद के कुछ पल छलकती 
सपने को सच सा जताती 
ये दिल की धड़कने 
फिर एकबार अपने को यकीन दिलाती 

आज चाँद आएगा

कोशिश होगी 
तू आज आँखे बंद करके सोये। 

उम्मीद है..........!? 

तुझे आज नींद आये 

Saturday, 30 March 2019

कुछ धुंधला सा .......


कभी एक निर्णय सिक्का उछालकर लेते हो
दुविधा का बोझ नसीबो पे ढकेलते हो

जानते हो मगर पहचानते नहीं हो
अनजान बनकर झूट जताते हो
दुनिया क्या कहेगी
इस बात से घबराते हो

पता है शायद
क्या चाइये ?
क्यों चाहिए ?
किसलिए चैहिये ?

देर बस लकीर को लांघने की है तेरी
चित हो या पट
देर उस क्षण को पहचानने की है तेरी

जब समय थम जाये
तब
पोहोचने दे उस आवाज को कानो तक
अपने आप ही

भींतर अपने ही झाँक के देख
धुंधला ही क्यों न हो
नज़र आएगी मंज़िल तेरी

सिक्का गिर जाये तो देखना मत
चित है या पट

समेटकर कर अपने आप को
यात्रा की शुरुवात कर
अब तू जनता है
तुझे
क्या चाइये !
क्यों चाहिए !
किसलिए चैहिये !

Thursday, 28 February 2019

Chaos Suits YOU ............?


A roadside walk
in the dark ... ticking clock
and a bottle of loss

I drink it all, no time left

My soul is still somehow pushing me

I move. I take that one step inside me


There's a large cyclone

raging,
growing.

I see me standing at the center of it, still,

all alone
with an unquenchable thirst of peace,
hoping to find an ounce of it at least.

Destruction is all I sense.

My heart says it will pass away,
it is temporary.

Circular dusty winds absorbing them whoever crosses its path

making them too feel my wrath.

I still keep moving ...

looking at what I have caused.

Pointing towards it

"Don't you think chaos suits you ?"
I say to myself ....

Dead inside ... the silence kills me

My desires turned sore .. thirst all grown

I now fall down where I was

staring at it through the holes of my heart .....
a long gaze what my heart had lost

A smile is born and I tell myself

breathe while it gathers more souls .... !

In the midst of chaos

my heart seeks something ...!

Sunday, 24 February 2019

#पहले अलफ़ाज़ !

मंजिल को पोहोचना है ख्वाब उसका। 
ज़हन में अपने ठान ली है ये बात !

कांटो के अलफ़ाज़ चुभते रहेंगे युंही 
उनके ही अहंकार की राख से नेहलादे वही .. 
ज़िम्मा जो उठाया है स्वप्नपूर्ति का। 

करवटें लेंगी ये राहे,
कुछ नई 
कुछ पुरानी 
काफिरों की भी कमी नहीं इन राहों पर।

तू बस चलते जा 
कारवां बनता जायेगा 
चाहे सर्द हवाएं तेरी ज़िद को जमाये 
या
धुप की गर्मी गला दे तेरा विश्वास
बुझने नहीं देना तेरी दिए की आस,
तू बस चलते जा। 

पटाखों की शोर में तेरी दिए की चीख 
कही दब सी जाएगी। 

मगर पीछे मुड़के देखना ज़रूर 
बादल बनके बारिश लारहा हूँ !

बारिश और दिए की राहें अलग क्यों न हो 
मंज़िल एक है जो 

तू जल कर रौशनी फैलाती जा 
में यूँ ही खुशियाँ बरसाता रहूँगा !