Saturday, 10 June 2023

पुराने पन्ने ।।

हाथ में कलम था मगर पन्ना कोरा ही रहा, 

बोहोत वक्त बीत गया सोचने में ।

क्या लिखूं ?

इतना कुछ है, जो जहन में है मगर बया कैसे करू ?

स्याही भी सुख गई और पन्ना भी हवा में उड़ गया 

लिख मेरा मन रहा था 

यादों के पन्नो पर, आंखों की कलम से आंसुओं की स्याही से ।

फिर वही बातें, वही राते,

हस्ते हुए दिन और गीत भरी शामे ।

थोड़ा और जी लिया होता उन लम्हों को,

अपनी परेशानियों को दूर ढकेलकर कूद जाता खुशी के कुएं में,

डूबता भी तो खुशी से डूबता ।

वक्त इतना सब बदल देता है क्या ?


Tuesday, 7 March 2023

गहराई


सुकून तो आपकी आंखों में हैं,

हम यूंही दिल में झांक रहे थे ।


जीना, तो उनमें खो जाना हैं,

हम यूंही आपको ताक रहे थे ।


Sunday, 16 May 2021

बस युही

आज कुछ ऐसा हुआ, 

ऐसा लगा जैसे अब करने को कुछ नही । 


महसूस किया मैंने कुछ ..

लगा जैसे हम केवल साँस हि तो ले रहे है ।

ऐसा लगा जैसे जीवन का सार समझ लिया मैंने ।


ऐसे समय मे मैंने लोंगो को सुन्न होकर् जीवन रेखा पार करते देखा है !


मगर मैंने वक्त कि गेहराई में जो देखा आज, 

उसे नापने का मन कर गया

ठहर गया लकीर से एक कदम पीछे

.

.

पार किया तो क्या लौटूंगा कभी ?

क्या करना है जानकर जो आजतक कोई जान न सका ? 


मन खाली सा हो गया

कुछ नही कहने को,

न कुछ सूनने को है ..


समय के बहाव को इतनी नजदिक से जो देख लिया था ।


उलझन

सीधी एक बात है

लगती टेढ़ी सी है मुझे ।

दीखता है कुछ 

होता कुछ और है ।

अनकही है कुछ 

दिल सुनता कुछ और है ।

कैसे समझाऊ जिससे में खुद नासमझ हूँ ।

जानलो अब इस बात को

जिससे में खुद अनजान हूँ ।

Wednesday, 1 May 2019

शहर !


जिस शहर से आप हो आयी,
वहा का में देहाती।

रास्ता ढूंढते हुए जब
एक नाम से नज़र मेरी टकराई।

कैसा दस्तूर है यह
जो
आपसे बात करने को मन किया
तो
मैंने कविता की राह अपनायी। 

Thursday, 4 April 2019

उम्मीद है..........!?

वो क्या है जो हर किसीको सोचने पर मजबूर कर देता है ?
क्यों कोई देर रात को गहरी सोच में पड़ जाता है ?

हम अक्सर अकेले होते है तो बीते पल याद करते है। 
कुछ चीज़े अलग से करने का मौका मिल जाए तो न जाने हम आज वो नहीं होते जो अभी है। 
कभी ये ख्याल तो आया ही होगा हर किसीको को !

हम सबने कुछ गलतिया की होंगी जो समय में पीछे जाकर बदलने का मन करता है। 
एक नकली चेहरा पहने घूमते है हम सब
वो झूठी मुस्कान लिए सब को बेवकूफ बनाते रहते है 
अपने आप को भी। 

जब थके हारे शाम को घर लौटते है,
तो आईने में दिखता है हमे। 
वो जिसने मुखौटा नहीं पहना,  
हमे रोता देखकर जो हंस रहा हैं। 

उसे नज़रअंदाज़ कर के जब सोने की कोशिश करते है, 
तो पलकों के बीच का फैसला इतना बढ़ जाता है जितना आसमान और ज़मीन के बीच हो। 
पता नहीं किस की खोज में रहता है हमेशा ?

आज कल तारे क्या चाँद भी नज़र नहीं आता इन शहरो में !
में अक्सर अपनी दिल बात चाँद से बयान करता हूँ। 
उससे क्या ही छिपाना,
काली रातों में जो अपनी रौशनी से अंधे को राह दिखाए। 
मुखौटे के पीछे छुपे हमारी असलियत को वही तो पहचानता है। 

इन शहरो में आज कल उसअंधे को रह देने वाला कोई नहीं !
तरसती है आँखें उस रौशनी को महसूस करने के लिए.......
  
कभी शांत बहती नदी में देखा करता था में उसकी परछाई, 
ऐसा लगता जैसे आसमान और ज़मीन का मिलान हो रहा हो। 
उसकी सफ़ेद रौशनी में 
किनारे की रेत समंदर कि लेहरो को चूमते हुए गहरायी की तरफ खिच्ची चली जाती। 

आँखें खुली रखकर ही सो जाते है हम, 
बीते कल की सपनो में खोकर। 

सुबह की किरने फिर बहलाती 
उम्मीद के कुछ पल छलकती 
सपने को सच सा जताती 
ये दिल की धड़कने 
फिर एकबार अपने को यकीन दिलाती 

आज चाँद आएगा

कोशिश होगी 
तू आज आँखे बंद करके सोये। 

उम्मीद है..........!? 

तुझे आज नींद आये 

Saturday, 30 March 2019

कुछ धुंधला सा .......


कभी एक निर्णय सिक्का उछालकर लेते हो
दुविधा का बोझ नसीबो पे ढकेलते हो

जानते हो मगर पहचानते नहीं हो
अनजान बनकर झूट जताते हो
दुनिया क्या कहेगी
इस बात से घबराते हो

पता है शायद
क्या चाइये ?
क्यों चाहिए ?
किसलिए चैहिये ?

देर बस लकीर को लांघने की है तेरी
चित हो या पट
देर उस क्षण को पहचानने की है तेरी

जब समय थम जाये
तब
पोहोचने दे उस आवाज को कानो तक
अपने आप ही

भींतर अपने ही झाँक के देख
धुंधला ही क्यों न हो
नज़र आएगी मंज़िल तेरी

सिक्का गिर जाये तो देखना मत
चित है या पट

समेटकर कर अपने आप को
यात्रा की शुरुवात कर
अब तू जनता है
तुझे
क्या चाइये !
क्यों चाहिए !
किसलिए चैहिये !